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कातिक असनान | Onlinebulletin

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

 

जइसे कातिक के महिना लगथे, तइसे जम्मो झन कातिक असनान करे जाथें। भिंसरहा ले उठके सुरुज ऊए के पहिली तलाव, नदिया के पानी म असनान करथें अऊ असनान करे के बाद पूजा-पाठ करके जम्मो घर लहुटथें। पहिली कातिक के महिना म जाड़ हर भदराय रहय अऊ जम्मो झन जाड़ म कुड़कुड़ावत रहंय तभो ले भिंसरहा ले उठके कातिक असनान करे जावंय।

 

आजकाल तो जाड़ घलो नइ लागय तभो ले कोनो कातिक असनान्दे नइ जावंय। पहिली के रहन-सहन अऊ ए सब रीत मन कतका सुघ्घर लागंय । अब तो ए सबो हर नंदागे। जम्मो संगी जुर मिल के अऊ घर के सियान मन के संग म कातिक असनान करे जावन। चुरकी म फूल-पान धरतेन अऊ जल चढ़ाय बर बाल्टी अऊ चरु धरन। तलाव/नदिया म असनान करे के बाद दोना म दिया ढिलन।

 

तलाव, नदिया हर कतका सुघ्घर जगमगा जावय। कोनो दिन भिंसरहा जाड़ के मारे कातिक असनान्दे जाय बर नइ उठतेन त दीदी, बहिनी मन खींच-खींच के उठावंय अऊ संग म लेगंय। सबो झन साल-सेटर पहिर ओढ़ के जातेन। तलाव पहुंच के थोरकन पार में बइठे रहितेन, तेखर ले सबो झन असनान करतेन। असनान करे के बाद तुलसी, अंवरा, बर, पीपर के पूजा करन।

 

तलाव तीर के मंदिर म घलो पूजा-पाठ करन। पूजा करे‌ के बाद जब घर लहुटन त रद्दा म किस्सा सुनत-सुनत आवन। सियानिन के किस्सा म  अतका मगन हो जावन के कतका बेर घर हबर जावन तेखर पते नी चलय। सियानिन मन रोज अलगे-अलग किस्सा सुनावय अऊ सीख देवंय। किस्सा सुनके हमरो मन ह अतका मोहा जावय के दिनभर सुनतेच रहितेन कहुक लागय।

 

घर हबरत ले  बिहान घलो हो जावय अऊ सुरुज ऊए के टेम हो जावय। घर हबर के अपन-अपन घर के दुरा म चउंक घलो पूरन। कातिक भर रोज सबके दुआरी म चउंक पुराय रहय अऊ दुआरी हर चुकचुक ले सुघ्घर दिखत रहंय। आजकाल अइसन सुघ्घर रीत मन नंदावत हें।


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