धरती की करुण पुकार…
©उषा श्रीवास, वत्स
नितदिन करती है उपकार
आज खुद करती है मनुहार,
पाला पोषा बरसों से जिनको
आज वही करते हैं अत्याचार।
धधक रही, हो रही हूँ बंजर
लालच ने खींचा ऐसा खंजर।
अन्न जल साँसे सब देती हूं,
सब लेकर देते हैं दर्द अपार।।
अगर चाहिए जीवन उज्जवल
सुन ले मानव धरती की पुकार,
प्राणदायिनी तेरी माता वसुंधरा
आज तुझसे कर रही है पुकार।
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