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अवनि का श्रृंगार | ऑनलाइन बुलेटिन

©अनिता चन्द्राकर, व्याख्याता

परिचय– दुर्ग, छत्तीसगढ़


 

 

जिस धरती पर हमने जन्म लिया,

बह रही उसकी आँखों से अश्रुधारा।

स्वार्थ, लोलुपतावश अंधाधुंध दोहन से,

हमने धरा का अनुपम सौंदर्य उजाड़ा।

माँ लुटाती रही सदा ममता हम पर,

दुख सहकर भी की निःस्वार्थ प्यार।

नहीं याद रहा मानव को संतान-धर्म,

तभी तो मचा है चारों ओर हाहाकार।

जल, थल, वायु सब हो गये प्रदूषित,

कम न हुआ मानवों का अत्याचार।

नियमों को तोड़ा, कर्तव्य भूलकर,

भुगत रहा गलती की सजा संसार।

नदियाँ, पर्वत, वन, और खनिज भंडार

हमें मिला था अमूल्य उपहार।

आओ मिलकर ले आयें ख़ुशियाँ,

हम सभी धरती माता के कर्जदार।

प्रदूषण से बचाएँ धरती माता को

उपजाऊ मिट्टी जीवन का आधार।

लहलहाती फसलें, कलकल नदियाँ

प्रकृति का मानें हृदय से आभार।

प्रदूषण से मुक्त रहेगा जब पर्यावरण,

तभी सुरक्षित रहेगा अपना ये संसार।

संकल्प करके कुछ कर दिखाएँ अब,

करें पेड़ लगाकर अवनि का श्रृंगार।


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