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खाईत छी हम सप्पत | ऑनलाइन बुलेटिन

©रीतु प्रज्ञा 

परिचय– दरभंगा, बिहार


 

 

 

मां भारती, मां भारती, मां भारती

खाईत छी हम सप्पत।

दुश्मन आगु नहि माथ कखनो हमर झुकत ।।

आहांक रक्षा हम,अंतिम सांस तकि करब।

जान भले ही चलि जायत,तिरंगा नहि हम झुकय दियब।

मां भारती, मां भारती,मां भारती

खाईत छी हम सप्पत।

दुश्मन आगु नहि माथ कखनो हमर झुकत।।

खिलाफ जुल्म के लरैत,हम हरदम बढब।

कंकड़-पाथरक तकलीफ सभ, हंसी-हंसी क सहब।

मां भारती, मां भारती, मां भारती

खाईत छी हम सप्पत।

दुश्मन आगु नहि माथ कखनो हमर झुकत।।

नहि नजर ककरो लागय दियब,अहिं स सिनेहिया के अछि तलब।

बेर-बेर लागैत छी गोर,नहि कम होबय देब अपूर्व महिमा गजब।

मां भारती, मां भारती, मां भारती

खाईत छी हम सप्पत।

दुश्मन आगु नहि माथ कखनो हमर झुकत।।

 

 

 

सौजन्य-

©रामभरोस टोण्डे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ 


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