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ठंड बहुत है; ताप लो | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

ठंड बहुत है ताप लो, जला अंगीठी पास।

हाथ पैर को सेक लो, आती उष्मा रास।।

 

मिट्टी का वह गोड़सी, जिसमें जलते आग।

लुटा रहा है आग भी, मानो जन अनुराग।।

 

पैठे में लकड़ी टिका, डिब्बा उसके साथ।

माचिस चिमटा भी रखा, मनुज लिए कुछ हाथ।।

 

सेक रहे हैं देह को, मधम -मधम से आँच।

लुभा-लुभा कर ताप ले, मन कहता है साँच।।

 

ठंड बढ़े तो सोच मत, लकड़ी आग जलाव।

ठिठुरन बढ़ती ठंड में, रखना पास अलाव।।

 

पहने मोजे पाँव में, स्वेटर चढ़ता अंग।

मौसम सर्दी का बहुत, चढ़ा हुआ है रंग।।

 

मौसम है यह ठंड का, लो सुखद एहसास।

फिर आयेगा ग्रीष्म तो, तड़पेंगे सब प्यास।।


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