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हर्ष वेदना | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत वेद, बिलासपुर, छत्तीसगढ़.

परिचय– शिक्षा- स्नातक, प्रकाशित कृति खुदा खैर करे, नवा सुरुज (छत्तीसगढ़ी),  तपोनिष्ठ बुद्ध खण्ड काव्य. अनेक अप्रकाशित कृतियां, नृत्य नाटिका, रंग यात्रा आदर्श कला मंदिर की स्थापना, 1976 से रंग निर्देशक, मंचित नाटक – लगन, दुश्मन, मूर्ति कार, शुतुरमुर्ग, हम सब चोर हैं, मन मौजी राम, अरे मायावी सरोवर, जागौ संगी, खुदा खैर करे, शिखण्डी, भुंइया के महतारी, बात एक हर्ष की, जंगल की गुहार, जागेंगे, निर्भया, कबाड़ खाना, जोंक दधीचि. रायपुर दूरदर्शन से 4 जनवरी, 2002 को स्वलिखित और निर्देषित लोक नाटक, भुंइया के सरग का प्रसारण, अनेक राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर पर पुरस्कार प्राप्त।


 

धर्म का निर्माण कर विख्यात होगा

तत्वदर्शी बनके देगा ज्ञान सबको

तम मिटा देगा सकल संसार का

 

रानी को जब गर्भ ठहरा यूं लगा

स्वप्न स्वर्णिम सत्य का प्रभात है

खिल गया मन मुदित हो भवताल में

शिशु का सानिध्य पा उदभ्रांत है

आते जाते भाव हर्ष वेदना के

सह रहे थे चोट मनोप्रहार का

गर्भ की परिपक्वता जब आई निकट

चल पड़ी प्रसूत हेतु पीहर प्रदेश

राह में लुम्बनी वन की मंजिमा

देखती ही रह गई वह निर्निमेष

रथ रुकाया और उपवन चल पड़ी

रसास्वादन ली प्रकृति उपकार का

 

तरिणी पर आदित्य किरणों की विसर

धवल को स्फटिक जैसा कर दिया हो

धरणीधर की श्रृंखलाएं गगनचुंबी

ऐसा लगता व्योम का मुख छू लिया हो

कोकनद से सलग सर का आवरण

बिछा हो रक्ताम्बर कान्तार का

 

विविध रंगी पुष्प की परिकीर्णता

हो रही थी हर दिशा में पुष्पासार

खग के कलरव गान से तरु नर्तन किये

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कोकिलों के स्वर बने सरगम के तार

मुकुल जैसी ज्योत्सना अनुरूप बन

रूप निखरा विपिन के श्रृंगार का

 

किसलयों को चूमता पवमान जब

झूम उठते सिहर कर पादप जगत

बंक पगडंडी लगे व्यालों सरिस

पुष्प फल स्वागत निमित्त हो गये विनत

हर दिशा सुरभित अरु विश्रांत है

आमोद झरे प्रकृति अलंकार का

 

केकी की सुन नाद मन भावित हुआ

भृंग दल का राग मनोहारी बना

मंजरी प्रांगण में कर अठखेलियां

छक के पी मकरंद हुए अनंगना

शुभ्रता से उत्स छवि सुभान हुई

महत फीका रजतमय प्रतिचार का

 

प्रकृति के पराग रस की मधुरिमा

मेह बनकर कर चुकी थी मन मुदित

लुम्बनी के साल वन का गौरव बढ़ा

तेजोमय बालक हुआ गर्भ से उदित

निविड़ कानन हर्ष से मुखरित हुआ

जीव जंतु गीत गाए सत्कार का

 

पूर्णिमा वैशाख तिस पर साल वन

हो गया आलोक का भू अवतरण

देखकर आभा प्रकृति अभिभूत हुई

चतुर्दिश होने लगा मधुरस वर्षण

महामानव का करें स्वागत सभी

जो बनेंगे पथ प्रदर्शक संसार का

 

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