खोचनी के लिए | ऑनलाइन बुलेटिन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
गज़ल
ताले लग गये दिमाग की सोचनी के लिए।
सब कुछ लुटा दिया उसने एक भोकनी के लिए।।
दुनिया की दौलत लुटा दिया तो कुछ भी नहीं ।
झगड़ पड़े आज छोटी सी टोकनी के लिए। ।
वो अंधेरे में तरसते हैं चांदनी के लिए।
चिराग हमने जलाया है रौशनी के लिए।।
कातिलाना अंदाज बड़ा ही खासम खास है ।
काली आखें काफी दिल के टोचनी के लिए।।
उदास चेहरे पर आखिर आ ही गई हंसी ।
ये करिश्मा काफी है एक मोरनी के लिए।।
दिल चुरा लिया बड़े ही ऐतराम के साथ ।
ये हुनर उसे ही हासिल एक चोरनी के लिए।।
‘शहज़ाद ‘ प्यार मोहब्बत किस्मत से चले ।
तयार हो लढ़ने हाथ पाव खोचनी के लिए।।