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संगीत | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव 

परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

तुम मेरी गीत बन जाओ,

मैं तेरी संगीत बन जाऊं।

बावरा बन तुम्हारी यादों में,

रात-दिन प्रेम गीत गाऊं।।

 

अलग धुन बजाता रहूंगा,

तुम आओगी इस आश में।

घूमता रहूंगा मैं दर-बदर,

मिलन होगा विश्वास में।।

 

खुद नाचूंगा थिरक-थिरक,

चाहे पैरों में छाले पड़ जाए।

कलप कर पुकारता रहूंगा,

दुनिया में आवाज़ गूंज जाए।।

 

कभी तो आओगी सुनकर तुम,

दौड़ते-भागते हुए मेरे पास में।

जिंदा हूं एक झलक के खातिर,

मिलकर गीत गाएंगे साथ में।।

 

बसंती हवाएं सीटी बजा रही है,

मुड़ कर देख लो तुम एक बार।

झुकी पलकों को प्रेयसी उठालो,

फिर करना जी भर कर प्यार।।

 

कल-कल करती नदियों की धारा,

कानों में घुल रहा है मधुर घोल।

सुनकर मुग्ध मंत्र हो रहा हूं आज,

सुना नहीं कभी ऐसा मीठा बोल।।

 

चहक उठी पंछियां डालियों में,

तोता और मैना गीत गा रहे हैं।

इंद्रधनुषी रंग में रंग गए दोनों,

धरा से उड़ते गगन में जा रहे हैं।।

 

अलि का गुंजन सुन रही कलियां,

बुला रही है करने आलिंगन।

कर लो रसपान नवीन रस का,

झूम उठेगा मन रुपी मधुबन।।

 

बैंड बाजा की धुन में नाचे लोग,

चारों तरफ फैली खुशियां है।

आनंद और मंगल का मेला लगा,

जीवन में हजारों दु:खियां है।।

 

गालो गीत और बजालो संगीत,

तुमको किसी ने कभी रोका है।

जीवनसंगिनी के दामन पकड़ो,

सारा संसार मायाजाल धोखा है।।


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