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नैनन पंथ निहार रहींन | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©हिमांशु पाठक, पहाड़

परिचय- नैनीताल, उत्तराखंड.


 

सखे! मिलन कल आई नहीं तुम,

नैनन पंथ निहार रहीन तब।

कबही को हमही रिझाई रही तुम,

और कबही हमही से रिसाई रही तुम,

प्रेम का कौन सा रंग दिखाई रही तुम,

सखे! मिलन को आई नहीं तुम।।

तुमको जो देखें तो जी घबरायो है,

जो ना देखें हैं तो जी भर आयो है।

नैनन रतियाभर जाग-जाग कर,

तोहे यादन में नीर बहावें है।

सखे!मिलन को आई नहीं तुम,

नैनन तो हे पथ निहारती रहीं तब।।

प्रीत की रीत ये कैसी सखी री?

जी में हीय परी जाई रहिन रे।

ज्ञान गयो अब विवेक गयो अब,

लाज-शरम सब त्याग दियों है।

तोहार नैनन को जी में बसा अब,

बाँवरा बन गलियन में भटके हैं,

तन की सुधि नहीं, मन की सुधि नही,

दोनों ही सूख के काँटा भयो है।

सखे मिलन काहे आई नहीं तुम!

नैनन तोहे राह निहार रही तब।।

 

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