.

पीढ़ियों का अन्तर, अभिशाप या वरदान | newsforum

©प्रीति विश्वकर्मा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश


 

 

बढ़ते अविष्कारों की दुनिया में, घट रहे हैं सन्सकार

टेक्नोलाजी की दुनिया, फ़िरभी बढ़ रहे है अत्याचार

 

पीढ़ी दर पीढ़ी होती जा रही, इंसानियत क्यूँ लाचार

खुद ही खुद में उलझ रहा, इंसानी जीवन का आधार

 

रोजमर्रा में उलझ गया, social meadia बना संसार

आसपास का कुछ पता नहीं, विश्व का रखे है सारा सार

 

नये नये बदलाव लिये, आ रहे पीढ़ियों में काफ़ी अन्तर

गहरी खाई सी दिख रही, अन्तर बढ़ता जा रहा निरंतर

 

बेटा बाप को वृद्धाश्रम छोड़ॆ, कैसा है ये नवयुग का आगाज

नयें जवाने की रीत नयी, माँ बाप की प्रीति लगने लगी रिवाज

 

पीढ़ियों के बढ़ते अन्तर में, हम कितनी दूर निकल पाये

बेटे बेटी की नयी सोच, ये नजरिया हमें समझ कहाँ आये

 

समझना चाहिए बच्चों को, अपनें बड़ों का अन्तर्मन

समंजस्व बैठाये इस अन्तर में, टटोलें एक दूजे का अन्तर्मन

 

एक एक कदम दोनों जो बढायें,रिश्तों में प्यारी सी मिश्री घोलें

बच्चे समझे बड़ों का असमंजस, हम खुद को नवयुग में ढालें  …

 


Back to top button