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अपनों की तस्वीरें | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

 

धन की चाहत में छोड़ गए हम अपना देस,

सात समन्दर पार था वो कोई अनजाना परदेस।

न था अपना कोई उस पराएं देश में,

और अश्क बहते ही रहे अपनों की यादों में।

 

अपने जैसे ही लोग थे वहीं पर बहोत सारे मगर,

खून के रिश्तों की महक नहीं थी वहां कहीं पर।

देस पराया और पराया था हर कोई इन्सान वहां पर,

इसीलिए भीड़ में भी चलते हुए लगता था उदासी भरा सफ़र।

 

गुज़र जाता था दिन ऐसे तैसे ही वही पे,

मगर रातों की नींद जैसे कोई दुश्मन बन गई थी।

अंजान दीवारों से भी क्या करते हम बातें,

वो दीवारें भी हमारे लिए जैसे अजनबी बन बैठी थी।

 

मां बाप,भाई बहन का प्यार छूट गया अपने देस में,

धन तो कमाया मगर अपनों की तस्वीरें दिखती थी आंसूओं में।

भूल गए थे हम अपनों बिना भी हंसेगी ये जिंदगी,

मगर कितने भी धन से खून के रिश्ते नहीं मिलते किसी बाजार में।

 

फिर याद आने लगी मिट्टी अपने देश की,

अपनों के बिना जीवन में कोई भी अहमियत नहीं होती है धन की।

धन से जोड़े हुए सभी रिश्ते होते है मतलब के,

ऐसे रिश्तों में नहीं होती वो खुशबू अपनेपन की ।

 

धन की चाहत में छूठ गए पीछे अपने सारे रिश्ते,

लेकिन अपनों के संग ही कट जाती है जिंदगी हंसते-हंसते।

इसी गमों के साथ गुजर गए दिन और कई साल तन्हाई में,

धन तो मिला मगर अश्क बहते ही रहे अपनों की यादों में ।

 

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