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अदायगी तेरे हिसाब की | ऑनलाइन बुलेटिन

©कुमार अविनाश केसर

परिचय- मुजफ्फरपुर, बिहार


रस्म-ओ-रिवाज क़ायदे-कानून सब छोड़ दिये मैंने, अपने-पराए, बने-बनाए, सारे रिश्ते तोड़ दिये मैंने।

 

एक परबाज़ बैठा था दरख्त पर ऊँचा चढ़के,

दरख़्त की हर शाख में बारूद जोड़ दिये मैंने।

 

मेरा भी मकाँ होगा ऊँचा कभी, सोच कर आज,

खुद ही नींव की ईंटों के बंधन तोड़ दिये मैंने।

 

कभी हाथ आएँगे सोने-चाँदी के खजाने मेरे,

कंकड़-कंकड़, पत्थर-पत्थर जोड़ लिये मैंने।

 

इसी दुनिया में अदायगी है तेरे हिसाब की ‘केसर’

यही सब सोचकर सबके हाथ जोड़ लिये मैंने।

 

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