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पर्यटन | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

नई दुनिया की सैर कराता है पर्यटन,

दिल पे लदे बोझ को हटाता है पर्यटन।

प्रकृति सौंप देती है वह अपना रंग-रूप,

सैर-सपाटे से हाथ मिलाता है पर्यटन।

 

घूमना-फिरना है जीवन का एक हिस्सा,

वादियों से भी आँख लड़ाता है पर्यटन।

भूल-भुलैया में खोते हैं जाकर कितने,

उच्च- शिखरों पर भी खेलता है पर्यटन।

 

लहरों पे बैठकर नापता कोई सागर,

चेहरे पे ताजगी तब लाता है पर्यटन।

प्राकृतिक संपदा से भरी पूरी दुनिया,

बच्चों को पाकर खिलखिलाता है पर्यटन।

 

कितना कृपण है जो जाता नहीं घूमने,

अखिल विश्व का दर्शन करता है पर्यटन।

बिखरा इंसान खिल जाता है फूल के जैसे ,

जीने की तमन्ना और बढ़ाता है पर्यटन।

 

नई ऋतु आती है, पुरानी ऋतु है जाती,

उदासी के बर्फ को हटाता है पर्यटन।

परिन्दे भी उड़ -उड़ के जाते हैं विदेश,

नए विचारों का पर, खोलता है पर्यटन।

 

ग्लोबल दुनिया अब तो बन गई एक गाँव,

मंगल- चाँद से हमें जोड़ता है पर्यटन।

सांस्कृतिक विरासतों का करता है संरक्षण,

रोजी-रोटी से झोली को भरता है पर्यटन।

 

 

 

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