जब तक मेरी कहानी तेरे नाम तक ना पहुंचे | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा
आगाज़ तो हो जाए अंजाम तक ना पहुंचे
जब तक मेरी कहानी तेरे नाम तक ना पहुंचे
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तेरे आने से उजाला फैला है हरसू लेकिन
ये सुबह धीरे-धीरे कहीं शाम तक ना पहुंचे
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कभी उनसे सिलसिले थे दिन-रात गुफ्तगू के
अब सदियां गुज़र जाएं पैगाम तक ना पहुंचे
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मयकशी के दरिया में जो डूबा फिर ना उबरा
तेरी दीवानगी भी कहीं जाम तक ना पहुंचे
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इतनी भी तरक्की तो किसी काम की नहीं है
जहां यार-दोस्तों का भी सलाम तक ना पहुंचे
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