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कहां जाएं हम….

©हरीश पांडल, विचार क्रांति

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

उजड़ते जंगल और ज़मीन

बताओ कहां जाएं हम ?

कौन सुनेगा फरियाद हमारी

बताओ किसे सुनाएं हम ?

खांए जा रही है चिंता हमें ,

अपने पीढ़ियों को

बताओ कैसे बचाएं हम?

बडी -बडी योजनाएं जन जातियों

के पुनर्वास के लिए बनाएं जाते हैं

बताओ अपना घर

कहां बनाएं हम ?

उजड़ते जंगल जमीन

बताओ कहां जाएं हम?

कौन सुनेगा फरियाद हमारी

बताओ किसे बताएं हम ?

सरकार चाहे किसी भी

पार्टी का बनता हो

झोपडे उजड़ते है हम

आदिवासियों के ।

प्रताड़ित केवल हम

मूलनिवासी

आशियाना बनते हैं

सरकारी बारातियों के।।

हम जंगल के रहने वाले

बताओ क्या कमाएं –

क्या खाएं हम ?

उजड़ते जंगल जमीन

बताओ कहां जाएं हम?

हमे बेदखल करने, हमें

गोलियों के

निशाने बनाएं जा रहे हैं

हम मूलनिवासी

हम आदिवासी

हमे नक्सली बताएं जा रहे हैं

छिनकर हमसे, हमारी

मातृभूमि,,

धन कुबेरों को और

धनी बनाएं जा रहे हैं

हमे और हमारे पीढ़ियों को

हमारे ही खुन से होली

खिलाएं जा रहे हैं

छोटे -छोटे अबोध

बच्चो को भी

बेरहमी से गोली मारकर

उन्हें नक्सलियों के

साथी बताएं जा रहे हैं।

चोर -चोर मौसेरे भाई है

दुखड़ा अपना

किसके समक्ष सुनाएं हम?

उजड़ते जंगल जमीन

बताओ कहां जाएं हम?

कौन सुनेगा फरियाद हमारी

बताओ किसे बताएं हम?

Harish Pandal, Bilaspur, Chhattisgarh
हरीश पांडल, विचार क्रांति

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