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हां मैं ही माहवारी हूं | Newsforum

©प्रियंका महंत, रायगढ़, छत्तीसगढ़ 

परिचय: किरोड़ीमल कला एवं विज्ञान महाविद्यालय से एमए संस्कृत की छात्रा, लेखन के क्षेत्र में रुचि.


 

मासिक धर्म पर कविता

 

ना ही मैं कोई बीमारी हूं,

हां मैं ही माहवारी हूं।

 

मासिकधर्म, रजोधर्म या रक्तस्राव कह लो मुझे,

सात दिनों का महीना मैं ही तो कहलाती हूं।

 

 

क्यों समझता है समाज अस्पृश्यता मुझे?

मैं तो हर स्त्री की भलाई के लिए ही आती हूं।

 

 

क्यों इतना घृणा करते हो मुझे?

तेरे इस दुनिया में आने का कारण मैं ही तो हूं।

 

 

रसोई, मंदिर में पूजा-पाठ में क्यों वर्जित हूं मैं,

मैं तो इस प्रकृति की ही देन कहलाती हूं।

 

 

क्यों शुभ कार्यों में शामिल होने पर रोक-टोक है मुझे?

समाज के लिए अशुभ हूं?

जो खुशहाल माहौल में मातम सी जाती हूं।

 

 

करते हो मेरे नाम को लेकर अपमानित मुझे,

स्त्री जाति के लिए हूं मैं महावरदान,

ये आज मैं तुम्हें स्वयं बताती हूं।

 

 

ना ही मैं कोई बीमारी हूं,

हां मैं ही माहवारी हूं।


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