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नारी होती है महान | ऑनलाइन बुलेटिन

©सुरेन्द्र आदिवासी

परिचय– अजमेर, राजस्थान


 

 

क्योंकि नारी महान होती है।

मन ही मन में रोती फिर भी बाहर से हंसती है

बार-बार बिखरे बालों को संवारती है

शादी होते ही उसका सब कुछ पीछे छूट जाता है

सखी – सहेली, आजादी, मायका छूट जाता है

अपनी फटी हुई एड़ियों को साड़ी से ढंकती है

स्वयं से ज्यादा वो परिवार वालों का ख्याल रखती है

सब उस पर अपना अधिकार जमाते वो सबसे डरती है।

शादी होकर लड़की जब ससुराल में जाती है

भूलकर वो मायका घर अपना बसाती है

जब वो घर में आती है तब घर आंगन खुशियों से भर जाते हैं

सारे परिवार को खाना खिलाकर फिर खुद खाती है

जो नारी घर संभाले तो सबकी जिंदगी सम्भल जाती है

बिटिया शादी के बाद कितनी बदल जाती है।

आखिर नारी क्यों डर-डर के बोलती, गुलामी की आवाज में?

गुलामी में जागती हैं, गुलामी में सोती हैं

दहेज़ की वजह से हत्याएँ जिनकी होती हैं

जीना उसका चार दीवारो में उसी में वो मरती है।

जिस दिन सीख जायेगी वो हक़ की आवाज उठाना

उस दिन मिल जायेगा उसके सपनों का ठिकाना

खुद बदलो समाज बदलेगा वो दिन भी आएगा

जब पूरा ससुराल तुम्हारे साथ बैठकर खाना खायेगा

लेकिन आजादी का मतलब भी तुम भूल मत जाना

आजादी समानता है ना की शासन चलाना

रूढ़िवादी घर की नारी आज भी गुलाम है

दिन भर मशीन की तरह पड़ता उस पर काम है

दुःखों के पहाड़ से वो झरने की तरह झरती है

क्योंकि नारी महान होती है।


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