मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे | Newsforum

©अशोक कुमार यादव ‘शिक्षादूत’, मुंगेली, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ी गीत
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा-पोरा हा जीव के काल होगे रे।।
जब ले मईके गेहे मोर सुवारी।
तब ले सब जगह होगे अंधियारी।।
का-का चीज ल करंव मंय सवाल होगे रे।।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।।
तीजा-पोरा ह जीव के काल होगे रे।।
कूद के नल ल भकरस-भकरस टेंढ़त हंव।
गोबर-खर्सी ल झऊहा-झऊहा हेरत हंव ।।
घर के बूता हा जीव जंजाल होगे रे।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा-पोरा हा जीव के काल होगे रे।।
गली खोर म रेंगत हंव, मूढ़ म पानी बोहके।
दांत ल निपोरत हंव, लंबा गमछा ल ओढ़के।।
गाँव भर म मोर नाव के बवाल होगे रे।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा पोरा हा जीव के काल होगे रे।।
भात हो गेहे गिला चोआ बनाए रेहेंव।
साग ह हो गेहे खर नून ल बढ़ाए रेहेंव।।
भूख घलो अब मछरी के जाल होगे रे।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा-पोरा ह जीव के काल होगे रे।।
सानेंव पिसान ल चढ़ाएंव तेल के कराही।
कनकट्टा मन कूदत हें खउलत तेल म झपाहीं।।
कुहरा म मोर आंखी ह लाल होगे रे।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा-पोरा ह जीव के काल होगे रे।।
सेठरी, खुर्मी नई मिठावत हे बिना सोहारी के।
घर हा सून्ना -सून्ना लागत हे बिना सुआरी के।।
पत्नी मोर परमात्मा, मंदिर ससुराल होगे रे।
मोर येहू बछर हाल-बेहाल होगे रे।
तीजा -पोरा हा जीव के काल होगे रे।।