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प्रकृति…

©उषा श्रीवास, वत्स

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़.


 

देखो सुंदर रुप धरा का,

हर कोना महका दें,

बनी रहे सुंदरता इसकी,

वसुंधरा को स्वर्ग बना दें।

 

कभी गगन-नीला कभी

सुखी धरा-धूल उड़ाती,

धरती का रुप अनोखा कभी

हरियाली चादर फैलाती।

 

कभी इठलाती कभी बलखाती

कभी यौवन भी दिखलाती,

सतरंगी पुष्पलताओं ने किया श्रृंगार

लहलहाती फसलें मंद-मंद मुस्काती।

 

प्रकृति से हमें मिलता है सब कुछ

ठंडी पवन चलाकर हमें सुलाती,

मन को करती है मन-मोहित

हर पल रंग बदलकर मन बहलाती।

 

हर दिन आशा की नई किरण

हर दिन तू नया रंग दिखलाती,

कभी देख तुझे मोर नाचता

तो कभी चिड़ियाँ चहचहाती।

 

विनय से सिद्धि सुशोभित

यह सबको बतलाती

सब कुछ न्यौछावर करती

ऐसे जैसे माँ हो ममता सिखलाती।

 

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