ईद | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़,
परिचय– मुंबई.
रमज़ान-उल-मुबारक-मुबारक के बाद खुशियाँ आती है।
नए चाँद के दिखते ही, ईद नए रंग लाती है।
भाईचारे की है ये पहचान, बनते नए-नए पकवान,
ईदगाह में पढ़ते नमाज़, गले मिलकर बढ़ाते शान
सुख-शांति और बरकत की रब से दुआ माँगते हैं,
गिले-शिकवे सब मिटाकर, प्यार बाँटते हैं।
ग़रीबों को भी देते हैं ज़कात, होता नहीं कोई ज़ात-पात,
सिवैया की ख़ुशबू फैलाती मोहब्बत की एहसासात।
नए कपड़े और इतर लगाकर, ईद का जश्न मनाते हैं,
ग़रीब-अमीर , छोटे-बड़े मिलकर प्यार से निभाते हैं।