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प्यासा दरिया…

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,

मेरे जानिब नज़्में ग़ज़लें ख़त अफसाने तरहदार सा लगता है।

 

रात रानी मेरे सुने आंगन में खुशबू लूटा रही थी,

नौ-ख़ेज़ बहारों के फूल गुलाबी खत का संदूक सा लगता है।

 

दर्द की मोजें याद का दरिया इक खत में कहां आ पाता,

नीली धुंधली खामोशी , ख़ामोश लबों पर फसाना सा लगता है।

 

दरिया-ए-इश्क ,ए ख़िज़्र ;पार कीजिए इस गरीब का,

याद का कंकर, दुख की लहरें हमें मसीहा सा लगता है ।

 

भीगी रातों में उनके ख़त आज हमें सिरहाने से मिले,

तपते सहराओं का दरिया का दरिया प्यासा लगता है।

 

 

ख़िज़्र : prophet

तरहदार : मनोहर

नौ- खेज : नया

जानिब : पक्ष ,पहलू

 

Bijal Jagad, Mumbai, Ghatkopar

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