सुघ्घर रइहव गा, अपनेच घर अऊ परिवार म | newsforum

©द्रौपदी साहू (गाइडर) कोरबा, छत्तीसगढ़
कवियित्रि द्रोपदी साहू की आवाज में सुने ऑडियो भी
गीत
झन जइहव संगी, एति-ओति, गली-खोल दुआर म।
सुघ्घर रइहव गा, अपनेच घर अऊ परिवार म।।
बाहिर तंय निकलबे त, होही कोरोना गा।
मुड़ी धर के तोला परही, घेरी-बेरी रोना गा।।
बहाना करके तंय संगी, झन जाबे कोनो बार म।
झन जइहव संगी, एति-ओति, गली-खोल दुआर म।
सुघ्घर रइहव गा, अपनेच घर अऊ परिवार म।।
घेरी-बेरी हाथ धोवा, सेनेटाइज करत रहा।
दु गज दूरी मास्क जरूरी, एखर पालन करत रहा।।
बच के रइहा गा, रहना हे बने संसार म।
झन जइहव संगी, एति-ओति, गली-खोल दुआर म।
सुघ्घर रइहव गा, अपनेच घर अऊ परिवार म।।
योगा-बियाम करके संगी, तन ल बने राखबे गा।
बने रबे तंय हर त, दुनिया ल देखबे गा।।
टर जाही संगी, दुख एहु आंसो के तिहार म।
झन जइहव संगी, एति-ओति, गली-खोल दुआर म।
सुघ्घर रइहव गा, अपनेच घर अऊ परिवार म।।