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तथागत का धम्म तो पंचशील का पालन, सदाचार, दान, ध्यान, प्रज्ञा, करुणा और मैत्री का मार्ग है…Buddha

Bouddh
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Buddha Purnima – Buddha’s Dhamma is not the Dhamma of fanfare, show off, lewd performances, dance songs, noises and rallies. This speech, debate, intellectual speech is not a religion of luxury. Dhamma of Tathagat is the path of following Panchsheel, virtue, charity, meditation, wisdom, compassion and friendship.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन: बुद्ध पूर्णिमा – बुद्ध का धम्म धूम-धड़ाके, दिखावे, फूहड़ प्रदर्शन, नाच गाने, शोरगुल और रैलियों का धम्म नहीं है. यह भाषणबाजी, वाद-विवाद, बौद्धिक वाणी विलास का धम्म नहीं है. तथागत का धम्म तो पंचशील का पालन, सदाचार, दान, ध्यान, प्रज्ञा, करुणा और मैत्री का मार्ग है. (Buddha)

 

बुद्ध के धम्म मार्ग पर चलना आसान नहीं, तलवार की धार पर चलने के समान है. क्योंकि इसमें कोई शॉर्टकट नहीं है. इसमें आत्मा परमात्मा, कर्मकांड और अंधविश्वासों के लिए कोई जगह नहीं है. यहां कथनी और करनी में फर्क नहीं है.

 

भगवान बुद्ध के धम्म में कोई दूसरा आपके लिए काम नहीं कर सकता, खुद को ही तपना होता है. मन, वाणी और शरीर से कुशल कर्म खुद को ही करने होते हैं, बाकी बातें व्यर्थ है.

 

बुद्ध की बताई बातें लगती तो बहुत सरल है. उपदेश, भाषण देना तो आसान है लेकिन आचरण में उतारना बहुत मुश्किल. ध्यान के द्वारा चित्त को एकाग्र करना, मन को वश में कर उसे निर्मल करना आसान नहीं है. हां, मार्ग कठिन है लेकिन असंभव नहीं. इसके लिए हर व्यक्ति सक्षम है. हर व्यक्ति में बुद्ध बनने की क्षमता है. पहले भी बुद्ध हुए और आगे भी होंगे.

 

वर्तमान में देश में बाबासाहेब अंबेडकर के कथित अनुयायियों द्वारा बुद्ध के धम्म के नाम पर बुद्ध पूर्णिमा व अन्य दिनों में बुद्ध तस्वीर को माला पहनाना, भाषणबाजी, शोरगुल, धूम धड़ाका, प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन किया जाता है. वह भी सिर्फ एक दिन का दिखावा व ढोंग.(Buddha)

 

मंच पर देवी के जागरण की तरह फूहड़ गीतों व नाच गाने के साथ वंदना और पंचशील गाये जाते हैं. दूसरे धर्म को कोसने, चिढ़ाने और भड़काने वाली रैलियां निकाली जाती है.

 

पंचशील धम्म ध्वज के प्रिंट के टी शर्ट, पगड़ी व साड़ियां पहनकर धम्म का अपमान किया जाता है. बुद्ध को कर्कश घृणास्पद के नारों में उछाला जाता है. ऐसे में दूसरों का धम्म के प्रति आकर्षण, श्रद्धा और हमारे प्रति सहानुभूति कैसे पैदा होगी?(Buddha)

 

लेकिन यह सब बुद्ध का मार्ग तो कतई नहीं है .सफेद वस्त्र पहन कर, पूजा पाठ कर, दंडवत होने और सिर्फ खीर खा लेने से कोई बुद्ध का शीलवान उपासक नहीं हो सकता. बेहूदे, असभ्य प्रदर्शनों में बुद्ध का वास नहीं होता है.

 

आज हो यह रहा है कि मंचों पर अलग- अलग संस्थाओं द्वारा जब भी भगवान बुद्ध की बात शुरू की जाती है तो शुरुआत दूसरे धर्म को कोसने से होती हैं, राजनीति की होती है. अपनी संस्था के गुणगान होते हैं फिर वहां बुद्ध वाणी, साहित्य अध्ययन और धम्म प्रचार की बातें तो गौण हो जाती है. (Buddha)

 

कड़वा सच तो यह है कि हम लोग स्वयं अपने कर्मों से भगवान बुद्ध के धम्म को घृणित रूप से प्रस्तुत कर बुद्ध और बाबासाहेब को घृणा के पात्र बना रहे हैं. यदि आज डॉ. अम्बेडकर जीवित होते हैं तो यह सब कुरुपताएं देख कर हमसे जरुर लड़ते और कहते हैं, ‘मैंने तुम्हें ऐसा धम्म तो नहीं बताया था.’

 

अतः यदि जीवन में पंचशीलों का पालन, दान, ध्यान साधना और प्रज्ञा का अभ्यास नहीं है. यदि हमारे आचरण में प्रेम, करुणा और मैत्री नहीं है तो वहां और कुछ भी हो सकता है बुद्ध का धम्म कतई नहीं.(Buddha)

 

 

भवतु सब्बं मंगलं…सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो 

Buddha

 

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