राजा अब बैलेट से | Onlinebulletin.in
©मोहनलाल सोनल ‘मनहंस’
शुभ छब्बीस नवम्बर
सन् उन्नीस सौ उन्चास ।
सबसे बड़े लोकतंत्र में
बड़ा दिवस हैं खास ।।
बना ङ्राफ्ट अनूठा
विविधता समेटे संग ।
विशेषताएं देख विधान की
सकल विश्व रहा दंग ।।
लचीले में लचीला
संविधान बड़ा ही भारी ।
संकट और आपात से
निपटने की पूरी तैयारी ।।
प्रस्तावना आजाद् परख
हम ‘भारत’ सब लोग ।
शालीन समभाव दिया
अब न होगा भेद का रोग ।।
राजा अब बैलेट से
उपज नहीं रानी कोख ।
सदियों चली राजशाही
विधान कर गया सोख ।।
अधिकार और कर्तव्यों से
श्रृंगारित संविधान ।
नीति-निर्देशक तत्व भी
लोकतंत्र की शान ।।
निर्धन आदिम पिछड़ों के
सहेजे खास उपबंध ।
ऊॅच नीच की खाई पाट
नारी उन्नति उपाय भी छंद ।
‘मनहंस’ नमन करू वंदना
अव्दितीय महा यह ग्रंथ ।
शुभ तिथी “संविधान दिवस” को
जयभीम आंबेडकर पंथ ।
। इति ।