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है नारी उसकी सुंदर कृति | ऑनलाइन बुलेटिन

©राजेश श्रीवास्तव राज

परिचय– गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश.


 

 

 

है नारी सुंदर कृति उसकी,

बनाया जग को जिसने है।

सदा समरूप दिखती वह,

जगत में अति निराली है।।

 

कभी जगदंबे दिखती है,

कभी वह लक्ष्मी बनती है।

वह अन्नपूर्णा बनती जब ,

पोषण सबका करती है।।

 

करुणा की और ममता की ,

कभी प्रतिमूर्ति दिखती है।

तभी वह जननी बनने का,

सुखद अनुभूति करती है।।

 

नियंता की यही रचना,

सहजता को दिखाती है।

आन पर आंच जब भी हो,

वही काली भी बनती है।।

 

प्रेम की अविरल धारा में,

राधिका मीरा बनती है।

महा शक्ति, महा भक्ति,

अनेकों रूप रखती है।।

 

कभी वह चौक पूजती है,

कभी सत्ता संभालती है।

रानी झांसी सी बनकर वह,

समर में कूद जाती है।।

 

नारी बिना यहां कुछ भी,

संभव हो नहीं सकता।

जगत में कार्य कुछ भी,

बिन तेरे हो नहीं सकता।।

 

है नारी सुंदर कृति उसकी,

बनाया जग को जिसने है।


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