महल यूं भी खंडर हुए … | ऑनलाइन बुलेटिन
©रामावतार सागर
परिचय– कोटा, राजस्थान
ग़ज़ल
कीमती आज कितने सिलेंडर हुए।
अस्पतालों में देखो बवंडर हुए।
लूट जारी रही बस दवा के लिए,
अब करोड़ों में देखो तो टेंडर हुए।
दम निकलता रहा पर न कुछ कर सके,
कितने बेबस बेचारे अटेंडर हुए।
प्यार के गाँव में ले चलेंगे सजन,
स्वप्न के सब महल यूँ भी खंडर हुए।
भूल सकते नहीं, याद रखना भी क्या,
तारीखों को समेटे कलेंडर हुए।
यूँ महकती रही साँस सागर से मिल,
तरबतर हो के हम भी लवेंडर हुए।