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इश्क है | Newsforum

©अविनाश पाटले, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

हां हमें इश्क है

अपने मुल्क से

कण-कण मिट्टी धूल से

नहीं रंगने देंगे इसे खून से

लेंगे बदला खून

के इक-इक बूंद से

चाहे देनी पड़े कुर्बानी

हम बनने नहीं देंगे

दुश्मनों की कहानी

है फख्र इस पवित्र भूमि पर

चढ़ने न देंगे इसे शूली पर

जिन रास्तों से वाकिफ हैं हम

उन से हम हरदम गुजरते हैं

सूरज अस्त नहीं होने देंगे

आबरू सरज़मीं की लूटने न देंगे

जलने न देंगे नफरत की आग को

लगने न देंगे इस मिट्टी में दाग को

हम ए-वतन के दीवाने हैं

राह मुश्किली के नहीं हारे हैं

दुश्मन आंख न उठा पाए

शरहद को पार कर

खाएं हम कसम

झण्डा को गाड़ कर

मगर झण्डा को झुकने न देंगे

कदम को अपने हम रुकने न देंगे

क्यों न मिट जाएं

सरज़मी में गिरकर

ए-वतन के हम रखवाले हैं

हम पागल मतवाले हैं

कफ़न तिरंगा हो

चमन तिरंगा हो

है हिन्दोस्तां हमारा

ये है जान से प्यारा

हां हमें इश्क है

अपने मुल्क से

कण-कण मिट्टी धूल से ….


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