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सहारा…

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद” 

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र 


 

दुआ करों बे सहारों को सहारा मिल जाये।

भरी दुनिया में कोई तो हमारा मिल जाये।।

 

बरसों से ऑखें होकर नाबिना की तरह है।

इन आँखों को उनका हंसिन नज़ारा मिल जाये।।

 

मंज़िल की तलाश में कश्ती चल पड़ी समंदर मे।

ज़द्दो जहेद यही मंजिल को किनारा मिल जाये।।

 

किस्मत कब किसकी कहाॅ कैसी खिलेंगी मालुम।

दिलका चहा वही चमकता सितारा मिल जिये।।

 

दर्या के थपेड़ों से नय्या डगमगाती रहती ।

कश्ती के मुसाफिर को खुदा इशारा मिल जायें।।

 

अपना मुस्तकबिल खुदको ही बनाना पड़ता है।

बद किस्मती से ना कोई खसारा मिल जायें ।।

 

दिल की तड़प को सुकुन का मरहम मिले यकिनन।

हमसफ़र कोई दिलवाला बिचारा मिल जाये ।।

 

‘शहज़ाद ‘उम्मीद एक दिन बर आती जरूर है।

खुशी भरा राही वो हंसिन पिटारा मिल जाये।।

 

*

बे सहारा=जिस का कोई सहारा नही

नाबिना=अंधा

कश्ती=नाव

जद्दोजहेद= कोशिश करना

सितारा=तारा

मुस्तकबिल =नसीब

खसारा= बेकार का बखेड़ा

सुकुन=शांती

यकिनन=विश्वास

उम्मीद =आशा

हंसिन = सुदंर

 

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