कुछ लफ्ज़ मेरे अखंडता के लिए…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
जिस जमींपर आज ये तेरा महल शान से खड़ा है,
उसी धरती मां के आंचल में दाग़ तुमने कितने लगाए है।
ये तिरंगा लहराने के लिए लहू सभीने बहाया है,
मगर कुछ लोग आज इसी मिट्टी को भी अपनी जागीर समझने लगे है।
ये हरे रंग की धरती की हरियाली सभी का जीवन है,
फिर भी हरा,नीला,केशरी सभी रंगों को हमने क्युं यहां बांट लिया है?
नीला अंबर,हरी सृष्टि और शौर्य का प्रतिक केसरी,
रंग विविधता का प्रतिक,उसमें भी ये धर्म कहां से आएं है।
दिल में मानवता,मन में इन्सानियत और भाईचारा हमारी एकता,
सोच इन्सानों की बदली,मगर रंग लहू का कब यहां बदला है।
तुकडो में बंटे थे जब हम,तब कोई और झंड़ा यहां लहराता था,
मगर आज ये तिरंगा हमारी मातृभूमि का सरताज बना हुआ है।
जिस जमीं पर आज ये तेरा महल शान से खड़ा है,
उसी धरती मां के आंचल में दाग़ तुमने कितने लगाए है।
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