यह संसार नहीं दरिंदों का मेला है | newsforum
©नीरज सिंह कर्दम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश
परिचय : शिक्षा – 12th, रुचि – कविता लिखना, अवार्ड- डॉ भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप राष्ट्रीय अवार्ड 2019, डॉ. भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप राष्ट्रीय अवार्ड 2020-21 के लिए चयनित.
यह संसार नहीं दरिंदों का मेला है,
हर गली नुक्कड़ पर शैतान डाले यहां पहरा है ।
कैसे बाहर निकले बेटियां, हर तरफ खतरा गहरा है
खुले घूमते हैं यहां भेड़िया, घात लगाए बैठे हैं ।
बेटियों का जीवन कैसे बच पाएगा
हर सपना अब कैसे साकार हो पाएगा ।
घर के दरवाजे पर ही खूनी दस्तक होती है
घर में सुरक्षा नहीं, बाहर कैसे सुरक्षित रह सकती है ।
किसके भरोसे निकले बाहर अपने घरों से
सत्ता में बैठे नेता मंत्री भी दरिंदे बन बैठे हैं ।
पुलिस सुरक्षा के रूप में भी भेड़िया अब दिखता है
रातों रात चिता जलाकर पुलिस अपना फर्ज निभाती है ।
यह संसार नहीं दरिंदों का मेला है ,
आजादी है यहां बेटियों को कागजों के टुकड़ों पर ।
जमीं पर बेटियों की नोची गई लाश का चिथड़ा है
कैसी बचेंगी बेटियां, सुरक्षा बस एक जुमला है ।
आज मानवता शर्मसार हुई है, देशभक्ति बदनाम हुई है
देश की बेटियों सरकारें भी तो शामिल हैं, तुम्हारी बर्बादी में ।
उन्होंने देखी जाति पहले फिर दो शब्द वो बोले
बलात्कारियों पर होगी कार्रवाई, कहकर मन ही मन डोले ।
हर क्षण उगते हैं खरोंच के नए निशान इन नितम्बों पर
अब तो इनके सुबुत के तौर पर खून के धब्बे भी नहीं बनते ।
ना जाने कितने अरमानों का बलात्कार होता है यहां रोज
यह संसार नहीं दरिंदों का मेला है ।