लहंगा गोटेदार ….
©श्याम कुंवर भारती (राजभर)
परिचय- बोकारो, झारखंड
हमके हरदम घुमरी घुमवलू हो।
हंसी लेलू जान तू हमार।
केकरा से नखरा तू पवलू हो।
पहिने लहंगा गोटेदार।
भगवान सजवले बाड़े तोहे रच रच के।
रहब नाही तोहरे बिना हम बच बच के।
होरीया में होई अबकी तोहसे घमसान।
गोरिया होईहा मत बेइमान।
रोज रोज हमके तू तरसवलू हो,
ओढ़नी ओढलु लहरेदार।
हंसी लेलू जान तू हमार।
बाग बगीचा झूमे झूमे सारी धरती।
झुमेला मनवा हमरो दिलवा पडल परती।
उड़ी उड़ी गुलाल उड़े ऊंचे आसमान।
दईब भईले तोहपे मेहरबान।
सुनर रूपवा में हमके भरमवलू हो।
तोहके छोड़ब नाही अबकी बार।
हंसी लेलू जान तू हमार।
आधी रतिया में होलिका दहन जब होई।
जरी के बुराई भरम दूर सबकर होई।
खिल के तू जान भइलू गुलदान।
पूरा करा हमरो अरमान।
फागुन में हमके नचनी नचवलु हो।
रंगब फागुन के फुहार।
हंसी लेलू जान तू हमार।
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