तीजा के तिहार…
©अशोक कुमार यादव
घेरी-बेरी अंगना मा निकल के, रद्दा ला देखत हौंव बाबू।
नइ आवथच काबर लेगे बर, आँखी ले गिरत हे आँसू।।
गाँव के जम्मों माई लोगिन मन, कुलकत चल दिन मइके।
परान भूकुर-भूकुर करत हे, का करहूँ ससुरार मा रहिके।।
काखर मेर भेजौंव सोर, पता, तोला कोने जाही बताएला।
झटकुन आजा अबेर झन कर, तीजा मा मोला लेवाएला।।
ननंद-भउजी मन ताना देत रहिन, कोनो नइहें तोर पुछइया।
ओतकेच समय तुमन पहुँचेव, लेगे बर मोला बाबू-भइया।।
मइके जाके दाई-दीदी संग, सुख-दुख के बात गोठियाबो।
नवा-नवा लुगरा पहिन के, हरतालिका तिहार ला मनाबो।।
करुहा करेला साग अउ भात खाहूँ, रहिहूँ निर्जला उपास।
केरा के पाना ले मंडप बना के, सुमर के करहूँ पूजा-पाठ।।
गौरी-शंकर के प्रतिमा बइठा के, बरदान माँगहूँ मैंय आज।
गोसइया मोर जुग-जुग जिए, हँसी-खुशी से रहय सुहाग।।
साबू दाना ला पी के, ठेठरी अउ खुरमी के करबो फरहार।
घूम-घूम के खाबो घरो-घर, खाके साध बूता जाही हमार।।
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