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सफर | ऑनलाइन बुलेटिन

©हरीश पांडल, विचार क्रांति

परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

तू चलता चल

तू चलता चल

विचार क्रांति

ले बढ़ता चल

कौन आयेगा

साथ तेरे, इस

भ्रम में मत पड़

तू चलता चल

तू चलता चल

अग्निपथ पर

बढ़ता चल

कांटे भरे राहों पर

एकता का बीज

रोपता चल

तू चलता चल

तू चलता चल

पगडंडियों पर

निशान है, हमारे

वीर पुरुषों के

स्वार्थ, लालच

की परत भले

चढ़ गई है

उन राहों पर

जिसे महामानवों ने

अपने खून से

सींचकर चमकाया था

आज की पीढ़ी

उन राहों पर अपना

पसीना तो बहाओ यारों

आओ चलें हम सभी

उनके पदचिन्हों पर

हम चलते चलें

सब संग बढ़ते चलें

तोड़ वैमनस्य की दीवारें

छोड़ जातिवाद की मीनारें

चलते चलें

एक दूसरे के सहारे

फिर गर कोई

साथ ना आते तो

तू चलता चल

तू चलता चल

क्रांति के पथ पर

तू बढ़ता चल

तू चलता चल

तू अपने पैरों के

निशां बनाता चल

आज नहीं तो कल

तुझ सा क्रांतिकारी

तेरे कदमों के

निशां ढूंढेगा

बस तू निरंतर

विचार क्रांति

के बोता चल

तू चलता चल

तू चलता चल

अग्निपथ पर

चलता चल

विचार क्रांति

फैलाता चल

तू चलता चल

तू चलता चल

तेरी मंजिल भी वही है

तेरा कारवां भी वही है

एक दिन सबको

इस राह पर

चलना होगा

अपनी विरासत

बचाना होगा

वर्ना दिखने को तो

इंसान दिखेंगे

किंतु स्थिति

पशुओं से बद्तर होगी

हम खामोश हैं

यही आने वाली

पीढ़ी को नश्वर होगा

स्वाभिमान जगाने

हक अधिकार पाने

आज के युवाओं को

विचार क्रांति के

पथ पर चलना होगा

हक अधिकार पाने

विचार क्रांति के

पथ पर अग्रसर

होना होगा …


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