संविधान की छत्रछाया में…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
कैसे चुप रहेंगे हम,ये जलता हुआ चमन देखकर,
चीखें उन शहिदों की गुंज रही है जहां चारों ओर।
दादा परदादा भी हमारे इस मिट्टी का वास्ता देकर गए है,
बूंद-बूंद अपने लहू का बहाओं इस मिट्टी के लिए यही सीख देकर गए है।
कौन अपना कौन पराया ये अपनी-अपनी इक सोच है,
गर मोहब्बत हो दिल में,तो ये सारा जहां अपनों से कम नहीं है।
मन में कुछ,निगाहों में कुछ यही सियासत की नई चाल है,
दिखाएं कुछ,छुपाएं कुछ इसीलिए सारा लोकतंत्र यहां पे बेहाल है।
सिर्फ”सत्य मेव जयते”कहने से ये हालत कभी बदल नहीं जाते है,
जहां इन्सानों को देखकर ही सभी फ़ैसले यहां लिए जाते हैं।
संविधान की छत्रछाया में ही,ये अमन और शांति यहां खिल उठी है,
लेकिन कुछ गद्दारों को ही,ये अमन और शांति यहां देखी नहीं जाती है।
गुलामी का ख्वाब देखनेवालों,हमारे लिए मर-मिटना कोई बड़ी बात नहीं है,
उन्हीं शहिदों की औलादें है हम,जिन्होंने इस मिट्टी के लिए लहू का कतरा-कतरा बहाया है।
कैसे चुप रहेंगे हम,ये उजड़ता हुआ चमन देखकर,
इस लहराते तिरंगे के लिए,ऐसी कई जानें कुर्बान करेंगे हम यहां पर – –
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