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नशा | ऑनलाइन बुलेटिन

©कलमकार

परिचय– मेरठ, उत्तरप्रदेश


 

नशा जात-बिरादरी नहीं देखती है!

 

समा जाता है आदमी इसमें जैसे दलदल में जाते हैं!

दावत चाहे कोई भी हो इसका सेवन करने

के लिए दिन और रात नहीं देखती!

सेवन करते हैं इसका आदमी चाहे जो हो!

 नशा जात-बिरादरी नहीं देखती है!

सालगिरा हो या जन्मदिन किसी अपने का भी!

 सबसे पहले लोग इसकी तरफ नज़र फेंकती है!

जशन इसके बिना सम्पूर्ण होता नहीं!

नशा जात-बिरादरी नहीं देखती है!

काला हो या गोरा इसके सेवन

के बाद रिश्तेदार बन जाते हैं!

दूर हो जाती है रंजिश सारी और बुरी बातें

 किसी के बारे में की नहीं जाती है!

बुरा सुन नहीं सकते अपने मित्र का फिर वो!

नशा जात-बिरादरी नहीं देखती है!

झूम जाते हैं और कही और ही दुनिया में होते हैं!

मदोश होते हैं इसको पीने के बाद थकान नहीं आती है!

नींद अच्छी आती है शयद इसको पीने के बाद!

 नशा जात-बिरादरी नहीं देखती है!


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