.

जरूरत ही क्या है | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान


 

 

जब आप के पल्ले ही नहीं पड़ रहा है तो ज्यादा उलझने की जरूरत क्या है!

 

आपका कहा हुआ कोई सुन ही नहीं रहा है

तो फिर उससे बतियाने की जरूरत ही क्या है!

प्यार से, तसल्ली से समझाने पर समझ में उन्हें आ ही नहीं रहा है तो फिर उसे बार-बार अनुनय करने की जरूरत ही क्या है!

 

जिसके शरीर के अंग-अंग में जहर फैला हो उसे अमृत पान कराने की जरूरत ही क्या है!

वक्त पर जो हमेशा बदल जाए उस पर विश्वास जताने की जरूरत ही क्या है!

 

मानवता को जिसने गिरवी रखा है उसको इंसानियत का पाठ पढ़ाने जरूरत ही क्या है!

 

जो इंसान को इंसान ना समझे उसके आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत ही क्या है!

 

जिसका जमीर पहले से ही मर चुका हो उससे अपेक्षा करने की जरूरत ही क्या है!

 

जिस पर सबका विश्वास पहले से ही उठ चुका हो उस पर भरोसा आजमाने की जरूरत ही क्या है!

 

जीवनभर हराम की खाकर इठलाताता हो उसको मेहनत का फल मीठा बताने की क्या जरूरत ही क्या है!

 

जिसमें दया, धर्म का अंश भी नहीं है उसे ईश्वर का डर दिखाने की जरूरत ही क्या है!

 

हकीकत में हैसियत की वसीयत ही नहीं है

तो फिर फालतू दिखावा करने की जरूरत ही क्या है!

 

जो गलती पर गलतियां करता रहे उस पर सुधारों का ढिंढोरा पीटने की जरूरत ही क्या है!

 

जो प्रेम की भाषा ही नहीं समझे उस पर प्रेम का मरहम लगाने की जरूरत ही क्या है!

 

जिसका वजन आप से उठा ही न सके उसमें दबकर बहादुरी दिखाने की जरूरत ही क्या है!

 

जिसकी फितरत में सदा धोखा हो उस पर विश्वास जताने की जरूरत ही क्या है!

 


Check Also
Close
Back to top button