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जी हाँ ! मैं मजदूर हूँ…..

©देवप्रसाद पात्रे

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़

 

 

मची है भागदौड़ जिंदगी में चैन-सुकून न आराम है।

हमें तो बस! भोजन की चिंता अभावों में जीना हराम है।।

बर्दाश्त न होती तकलीफें जीने को मजबूर हूँ।

जी हाँ! मैं मजदूर हूँ। जी हाँ! मैं मजदूर हूँ।

 

कल-कारखानों में बदन झुलसती आग में तपती है।

तब दो वक्त  की रोटी, अपने पल्ले पड़ती है।।

हर हाल में जीना है, गम पीने को मजबूर हूँ।

जी हाँ! मैं मजदूर हूँ। जी हाँ!मैं मजदूर हूँ।

 

टूटते सपनें इच्छाएं हमारी दफन होती है सीने में।

शोषण होती हर जगह हमारी बुरा हाल है जीने में।।

ऊपर से पड़ती बेवजह डंडे कैसे कहूँ बेकसूर हूँ।

जी हाँ! मैं मजदूर हूँ। जी हाँ! मैं मजदूर हूँ।

 

कभी ईंट-पत्थरों में दब जाता हूँ।

बड़ी पुलों का नींव बन जाता हूँ।।

तुम्हारी जिंदगी आलीशान बनाने

बड़ी ऊंची इमारतों में समा जाता हूँ।।

 

जितनी ताकत, मेहनत करता।

तब परिवार का पेट भरता।।

तपती धूप में खून सुखाता।।

सर से पांव पसीना बहाता।।

देखो फिर अपने हिस्से क्या आता??

बेशुमार दुख पीड़ा घनीभूत।

कभी मारा कहीं दुत्कारा जाता।।

खुशियों से कोसो दूर हूँ।

जी हाँ! मैं मजदूर हूँ।


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