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सूरज की तरह ढलने वाली है | ऑनलाइन बुलेटिन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र


 

गजल

 

खिसे खाली कहते वो नहीं मिले वाली है।

अजी बेकारों की दाल नहीं गलने वाली है।।

 

कितनों को बेकार किया इस सरकार ने कहो।

करलो कोशिशें आगे नहीं चलने वाली है।।

 

पढे लिखे लाख करली कोशिशें बड़ी उम्र क्या।

बगैर पानी के पेड़ की टहनी नहीं फलने वाली है।।

 

गया वक्त लौटकर दुबारा नहीं आता कभी ।

ये ज़िन्दगी सूरज की तरह ढलने वाली है ।।

 

अब पुतले बनेंगे ऐतिहासिक नाम बदलेंगे।

गरीब की शिखम बस भूख से जलने वाला है।।

 

आज़ादी का जश्न या दिखावे का एक छलावा।

जनता वाले वादे की बात टलने वाली है ।।

 

‘शहज़ाद ‘लोकशाही में जनता डर रही जरूर।

क्या आगे जनता देखिए मचलने वाली है ।

 

 

मेरी अधूरी कहानी | ऑनलाइन बुलेटिन

 

 

 


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