आशिकी | ऑनलाइन बुलेटिन
©रामकेश एम यादव
परिचय- मुंबई.
तेरी परछाईं को मैंने सीने से लगाया है,
गुलाब की पंखुडियों से तेरी तस्वीर सजाया है।
इस तस्वीर के भरोसे तो लंबा जी नहीं सकता,
हवाओं में फैली तेरी खुशबू से रात बिताया है।
चाँद-सितारे आखिर बताएँगे तेरा पता कब तक,
इश्क की ज्योति तेरे हुस्न की धूप से बनाया है।
मेरे मन का भौंरा उड़ रहा है तेरे इर्द- गिर्द ही,
तेरी उठती जवानी पर ये पागल चोट खाया है।
मेरे दिल का आंगन था वर्षों से बिलकुल सूना,
वही दिल आज चौदहवींके चाँद से जगमगाया है।
कच्ची नींदों के रस से भींगने लगी मेरी पलकें,
भले दूर से सही आज ख्वाबों मैं मुझे सताया है।
हो अजीज कितनी कहने के लिए अल्फाज़ नहीं,
कोई हो तू मोती की दरिया, अंदर से लुभाया है।
तेरी साँसों की बनाकर बाँसुरी कितनी बार मैंने,
अपने नांदा दिल को खुद-ब-खुद से बहलाया है।
हे!मालिक तख्त-ओ-ताज किसी और को तू दे-दे
एक लम्हें में उसके साथ जैसे उम्र भर बिताया है।
झुक-झुक के चुनेंगे हम फिर उसकी परछाईं को,
मद्धिम न पड़े ये आशिकी जो मैंने लौ जलाया है।