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आशिक़ी…

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

बदलेगा मौसम मगर धीरे-धीरे,

उठेगी जवानी मगर धीरे-धीरे।

पिएंगे प्यासे उन आँखों से मय को,

चढ़ेगी नशा वो मगर धीरे-धीरे।

 

ढाएगी कयामत जमाने पे एकदिन,

बढ़ेगी बेताबी मगर धीरे-धीरे।

राह -ए -तलब में छोड़ेगी दिल को,

होगा आशिक़ी का असर धीरे-धीरे।

 

करेगी इनायत किसी न किसी पर,

लुटाएगी जान-ओ-जिगर धीरे-धीरे।

जुल्फों में गुजरेगी रातें किसी की,

उस रात होगी सहर धीरे-धीरे।

 

बेखुदी का आलम  घेरेगा उसको,

चुभाएगी नश्तर मगर धीरे-धीरे।

नग्मों का उसपे जब पड़ेगा फुहारा,

जलेगा बदन वो मगर धीरे-धीरे।

 

उजड़े दिलों को बसाएगी फिर से,

घिरेगी घटा वो मगर धीरे-धीरे।

इनकार, इकरार, इजहार करेगी,

चलाएगी तीर-ए-नजर धीरे-धीरे।

 

होशवाले गंवाएँगे वो होश अपना,

चढ़ेगा जहर सर मगर धीरे-धीरे।

ख़ता की सजा तो मिलके रहेगी,

देगी दवा वो मगर धीरे-धीरे।

 

तरसते सितारे हैं बाहर वो निकले,

बदलेगी गेयर मगर धीरे-धीरे।

नेचर है उसका बहुत खुशमिजाजी,

करेगी शरारत मगर धीरे-धीरे।

 

नहीं है जवाब उस छलकती नजर का,

गिराएगी बिजली मगर धीरे-धीरे।

रस से भरा है सारा बदन वो,

रखेगी अधर पे अधर धीरे-धीरे।

 

Ramkesh M Yadav, Mumbai

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