अब वो कारवां कहां है….
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
बदला-बदला सा ये गुलिस्तां देखो आज कितना बेचैन है,
इसी गुलिस्तां पर मर मिटनेवाला वो कारवां कहां है।
गुज़र गया वो दौर,जिस दौर में सब यहां पर एक ही हिंदुस्तानी थे,
आज वही सब हिंदुस्तानी देखो कैसे उसी मिट्टी को भी भूल गए है।
जाते-जाते वो हमें आजाद गुलिस्तां की सौगात दे गए,
अपने लहू का निशां वो इस मिट्टी के कण-कण में छोड़ गए।
चीखें उन शहिदों की उस आसमां को भी चीर गई थी,
उन्हीं चीखों को अब इस नए जमाने में कौन यहां याद करता है।
हर जगह यहां पर देखो उन सभी शहिदों के पुतले है,
मगर हर दिन उन्हें,कौन यहां पर दिल से पूजता है।
ऐसे बदले हुए जमाने में देखो देशभक्ति भी कैसे बदली हुई है,
अब ये वही मिट्टी भी सभी को अपने मतलब के लिए ही याद आती है।
एक दिन आते है सभी,फूलों की मालाएं चढ़ाने हम पर,
मगर वो क्या जाने,कितना दर्दनाक था वो गुलामी का मंज़र।
ऐसे हालातों में कभी देखा नहीं हमने अपना वो घर-संसार,
इसी मिट्टी के लिए ही निकले थे हम,अपने सर पे कफ़न बांधकर।
अपनी ही धुन में मश्गूल होकर,आज यहां हर कोई जी रहा है,
बर्बादी का आगाज किए ये वतन अब थोड़ा-थोड़ा जल रहा है।
अरे देखो कभी इस वतन को भी,यही वतन हमारा खिला हुआ गुलशन है,
गर ये गुलशन ही उजड़ जायेगा तो फिर कौन यहां पर खुशहाल है।
ज़हर घोलकर मन मन में वो खेल अपना खेल रहे है,
देशभक्ति का वास्तां देकर तुम्हें,वो सत्ता का तख्त देख रहे है।
उखाड़ फेंको ऐसी नस्लों को,जो इस आजादी को ही मिटाना चाहती है,
सुनो उन शहिदों की चीखें,आज भी वो आजाद हिंदोस्ता चाहती है।
देखो कितने आन-बान-शान से लहराता है ये तिरंगा पूरे विश्व में,
उसी लहराते तिरंगे की कसम तुम्हें,ये गुलशन कभी बिखर न जाएं।
बदला-बदला सा ये गुलिस्तां देखो आज कितना बेचैन है,
इसी गुलिस्तां के लिए जिन्होंने बहाया लहू,अब वो कारवां कहां है।
गायकवाड विलास
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