आत्मज | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव ‘शिक्षादूत’, मुंगेली, छत्तीसगढ़
सोच रहा पांच लड़की के पिता,
कब जन्म लेगा वंश अग्रज ?
लड़कियां ही जन्म ले रही सदन,
स्वप्न देख रही भगिनी उग्रज।।
मां सोच रही उदास मन व्याकुल,
कब तक सुनुंगी सबके ताने ?
मेरे भाग्य में नहीं लिखा विधाता,
कुलभूषण बेटे का सुख पाना।।
बुढ़ापे का सहारा कोई नहीं है,
बेटियां होती है पराया धन।
शादी हो कर चली जाएंगी वंदोगृह,
अकेले कैसे कटेगी पूरा जीवन ?
रह जाएंगे हम दो पंछी अकेले,
हृदय और निकेतन वीरान।
किसके सहारे जीवित रहेंगे हम ?
अब तू ही बता दे मुझे भगवान।।
ताना देंगे सखी, सहेली, पड़ोसी,
वो मन-ही-मन रात-दिन हसेंगे।
बैठ सब के घरों में करेंगे चुगली,
सब लोग हमें निपूती कहेंगे।।
बेटा घर की दीपक प्रकाश वान,
बेटा से ही चलता समस्त संसार।
बेटा ना हो किसी के घर में तो,
चारों तरफ लगता है अंधकार।।
बढ़ ना पाएगा वंश क्रम हमारा,
हो जाएगा हमारे कुल का नाश।
किस उद्मम से होगा हमारा पुत्र ?
आखिर किस पर करूं विश्वास।।
कौन वैद्य देता है आत्मज की दवा?
कौन चिकित्सक पुत्र पैदा करवाता?
ले आओ दवाई जाकर तुम वल्लभ,
दुःख की यामिनी मुझे नहीं भाता।
कमा कर लाएगा हमारे लिए खाना,
जब शिथिल हो जाएगा हमारा शरीर।
श्रद्धा और भक्ति से सेवा करेगा,
हम आश्रित होकर हो जाएंगे अधीर।।
मृत हो सो जाएंगे धरती की गोद में,
बेटा ही करेगा हमारा अंतिम संस्कार।
मोक्ष पाकर स्वर्ग में निवास करेंगे,
दान,पुण्य का मिलेगा हमको उपहार।।