दिल्ली दूर नहीं | newsforum
©डॉ. संतराम आर्य, वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
यदि तुम चाहो तो
छीन सकते हो
अपने हिस्से का उजाला
जो चमचमाती संगमरमरी हवेलियों में कैद है
यदि तुम चाहो तो
छीन सकते हो
अपने हिस्से की
रोटी, हवा, पानी
और लहू की तरह
बहते अपने पसीने की कीमत
यह भीखू दब्बू दलित
कब तक बने रहोगे
अरे !
भूल जाओ
भीख भी नहीं मिलती
तब कौन देगा तुम्हें
तुम्हारे हक अधिकार
उठो !!!
वज्र सा बना लो सीना
बंद करके मुठ्ठियाँ
तान दो बाजुओं को
और बढ़ाओ कदम उस तरफ
जहां
जबरन बने बैठे हैं
वो हमारे भाग्यविधाता …