काले मेघ ….
©राम रतन श्रीवास
पवन का संपर्क पावन और,
काले मेघ की कामना।
नील गगन में घुमड़-घुमड़,
तप्त धरा को शीत कामना।।
पादप जन-जीव झुलस रहे,
लपट लू की ज्वालाएंँ।
कंठ शोषित हो रहे,
मृग तृष्णा की आभाएंँ।।
रदपुट शोषित हो रहे और,
तप्त स्वास प्रस्फुटित हो रहे।
स्वेद रज बिंदु दृश्यमान और,
व्याकुलता सर्वत्र व्याप्त हो रहे।।
पीपर पात हिय तन डोलत,
शुष्क वायु के होत सामना।
नील गगन में घुमड़-घुमड़,
तप्त धरा को शीत कामना।।
देख काले मेघ मन,
जल तृष्णा की हवाएँ।
विकल हो रहे जन-जीवन,
तप्त शुष्क की हवाएँ।।
प्रलंब बाहू जलधर के,
काले मेघ बन कह रहे।
चातक-सा स्वांति जल के,
आश वृष्टि को तरस रहे।।
हलधर भी आश लगाए,
जल रस धार धरा है प्यासी।
होंगे गुंफित अन्न-जल से,
नेह भरी धरणी-अंबर प्यासी।।
हे काले मेघ अब बरस जा,
जल रस धार की है कामना।
नील गगन में घुमड़-घुमड़,
तप्त धरा को शीत कामना।।
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