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मोला लेहे ग संगवारी | ऑनलाइन बुलेटिन

©सरस्वती राजेश साहू

परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

छत्तीसगढ़ी कविता

 

 

मैइके भेजे ग संगवारी, तय सधाये, तय सधाये

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

जोहत रहेंव मय आबे कैइ के

बैइठे रहेंव मय आस म मैइके

सुरता ल कैइसे, मय भुलावँव, नैइ भुलावँव

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

मोर हिरदय के तय ह रहैय्या

मोर मयारू सीधवा गोसैय्या

कैइसे सुते ग मयारू, नैइ जागे, नैइ जागे

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

तोर बिन संगी मरना होगे

भेंट भलाई सपना होगे

काहाँ पाहूँ रे मया ल, नैइ पावँव, नैइ पावँव

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

आँखी के आँसू थिरकत नैइ हे

जीनगी जीये के हिम्मत नैइ हे

तय मया ल बढ़ाके, का लुकाये, का लुकाये

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

तोर मीठ भाखा ल सुनत रैइतेंव

जैइसना कहते वैइसना करतेंव

कभू तोला रे मयारू, नैइ सतातेंव, नैइ सतातेंव

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

हदरत हे मन जीहँव कैइसे

अँइठागे तन मछरी जैइसे

काबर ग पिरोही, तय रिसाये, तय रिसाये

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

नाता रिसता सबले छूटगे

तोर मया के डोर ह टूटगे

ए दुनिया ले बाहिर, तय उड़ाये, तय उड़ाये

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये

 

मैइके भेजे ग संगवारी, तय सधाये, तय सधाये

मोला लेहे ग संगवारी, नैइ आये, नैइ आये


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