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मां का पल्लू | newsforum

©प्रीति बौद्ध, फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश 

परिचय- एमए, बीएड, समाज सेविका, प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित, सम्मान- C .F. M . Writers Asociation Asqnol Best Bangal.


 

माँ तेरे पल्लू का जवाब नहीं, लगता है कमाल।

मैं पानी की बून्द और तेरा ह्रदय है विशाल।।

तेरे पैरों की जुती हूँ माँ, तेरे कदमों में ही रहती।

जब चलती थी तब पांवों से उड़ता रहता गुलाल।।

तेरे आँचल में छिप जाने का हरपल ख्याल रहेगा।

जब जब रोऊं मां, तेरा पल्लू बन जाता था रुमाल।।

तुम्हारा पल्लू खाली अकाउंट बैंक सा रहता था।

नहीं चुकाना पड़ता कर्ज चाहे कितने हो साल।।

सर्दी में चादर बन जाता, गर्मी में बनता जो पंखा।

माँ का पल्लू मौसम के अनुसार बनाता था हाल।।

छोड़कर जाने तू कहाँ चली, मैं ढूँढू तुझे हर गली।

तुझ बिन अब कौन संवारे मेरे घने काले बाल।।

तेरे पैरों की पायल, तुझ बिन रहती हरदम घायल।

तुझ बिन सुना जग है, तेरे लाड़ को तरसते गाल।।


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