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ऐ, जिंदगी जरा हम पे भी…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

ऐ, जिंदगी जरा हम पे भी कभी एहसान करना,

भाग रहे है कब से और कोई नहीं है ठिकाना।

 

आसमां का छत और धरती की गोद यही दुनिया हमारी,

संग संग चलें मुश्किलों का साया और  बेकार है कोशिशें हमारी।

 

चलो अब हम दोनों भी कहीं पर रूकते है ज़रा,

संग संग भाग रहे है फिर भी मिला नहीं कोई किनारा।

 

और कितना भागे हम,ये राहें कब रूकेगी यहां पर,

बचपन से भाग रहे हम और खत्म नहीं होता ये सफ़र।

 

कहीं पर खुशियों की सौगात,कहीं पर गमों की बरसात है,

ऐ,जिंदगी तुही बता,सबके साथ ये तेरी कैसी करामात है।

 

ये खेल तेरा निराला,जिंदगी तुम्हारा नाम है,

कहीं पे छांव,कहीं पे तपती धूप का सहारा है।

 

ऐ,जिंदगी जरा हम पे भी कभी एहसान करना,

मिल जाएं कुछ सुकून की सांसें बस यही आखरी तम्मन्ना है।

 

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