आजादी के दीवानों तुम…
©राजेश श्रीवास्तव; राज
परिचय- गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश.
नहीं समझ में आता मुझको, क्या कट्टर संवाद लिखूं।
या भाईचारे को समझा, मधुर एक आलाप लिखूं।।
बहुतेरे को खोकर हमने, आजादी को पाया है।
फिर भी मतलब इसका कुछ को, समझ नहीं क्यों आया है।।
नहीं समझ में आता अक्सर कौन यहाँ कितना सच्चा।
राष्ट्रभक्ति का अलख जलाने वाला कौन यहाँ अच्छा।।
कुछ तो अब भी बाँच रहे हैं बर्बरता की बातों को।
अधिकारों की उड़ाके धज्जी पाट रहे हैं लाशों को।।
अरे, समझ सको तो उनको समझो, जो सरहद कुर्बान हुआ।
मजहब जाति रंग लिंग का दूर-दूर तक नाम हुआ।।
चलचित्रों संवादों से अब, नफरत फैलाना बंद करो।
ढपली को अपने बजा बजा अरे अब तो चिल्लाना बंद करो।।
अरे कुछ सीखो इस वसुधा से जिसमें सबका मान सदा।
कुछ सीखो उन पुरखों से जिसने राष्ट्र का ध्यान धरा।।
जिनके कहने पर अक्सर ही हिंसक इतना हो जाते हो।
क्या उनके घर भी मातम ही स्वर कभी सुन पाते हो।।
दर्द बांटना कब सीखोगे आजादी के दीवानों तुम।
घटती नित घटनाओं से कब चेतोगे बतलाओ तुम।।
नहीं समझ में आता मुझको कलम छोड़ हथियार धरूं।
या गिरि जा कर मौन धरे बस बन साधू औ ध्यान करूं।।
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