सिद्धार्थ ऐसे हुए गौतम | Newsforum
©वंदिता शर्मा, शिक्षिका, मुंगेली, छत्तीसगढ़
बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।”
सर्वप्रथम इसका अर्थ जानना भी आवश्यक है …
बुद्ध की शरण जाने का अर्थ हुआ, जिसने सत्य पा लिया है उसकी शरण जाता हूं। और धम्मं शरणं गच्छामि का अर्थ होता है, बुद्ध की शरण भी तो इसीलिए गए न कि उन्होंने सत्य को पा लिया, और संघ की शरण भी इसीलिए गए कि वे सत्य की खोज में जा रहे हैं, तो सत्य की ही शरण जा रहे हो, चाहे बुद्ध की शरण जाओ, चाहे संघ की शरण जाओ।
गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर वैशाखी पूर्णिमा के दिन हुआ था। भगवान बुद्ध के माता का नाम महामाया था। उनकी मां कोसल वंश की एक राजकुमारी थीं। भगवान बुद्ध के जन्म के पश्चात उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद उनका पालन-पोषण मौसी महाप्रजापति गौतमी के हाथों हुआ। इसलिए उन्हें “गौतम” के नाम से जाना जाता है।
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने अपने गुरु विश्वमित्र के पास वेद और उपनिषद तो पढ़े ही, राजकाल और युद्ध विद्या की भी शिक्षा लिए। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा को हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।
गौतम बुद्ध के उपदेश का भाव यह था कि हिंसा का उत्तर अहिंसा, दया और प्रेम से देना चाहिए। सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की कन्या से हुआ उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल था। वे नवजात शिशु और अपनी धर्मपत्नी को त्याग, और राजपाठ का मोह त्यागकर संसार को दु:खों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य देवी ज्ञान की खोज में रात के समय वन की ओर चले गए।
वर्षों को कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए। बोधगया यह स्थान बिहार के ‘गया’में स्थित है।
भगवान बुद्ध के महत्वपूर्ण उपदेश
- मनुष्य को अतीत के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही भविष्य की चिंता करनी चाहिए। हमें अपने वर्तमान समय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यही खुशी का मार्ग है।
- मनुष्य को अपने शरीर को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी है। अगर शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपकी सोच और मन भी स्वस्थ और स्पष्ट नहीं होंगे।
- सभी गलत कार्य मन में जन्म लेते हैं। अगर आपका मन परिवर्तित हो जाए तो मन में गलत कार्य करने का विचार ही जन्म नहीं लेगा।
- हजारों खोखले शब्दों से वह एक शब्द अच्छा है, जो शांति लेकर आए।
- किसी से घृणा करने से आपके मन की घृणा खत्म नहीं होगी। यह केवल प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है। वैसे ही बुराई से बुराई खत्म नहीं होती, वह प्रेम से खत्म होती है।
- जो लोग जितने लोगों से प्यार करते हैं, उतने लोगों से ही वे दुखी होते हैं। जो प्रेम में नहीं है, उसके कोई संकट नहीं है।
- एक जंगली जानवर से ज्यादा खतरनाक एक कपटी और दुष्ट मित्र होता है क्योंकि जानवर आपको केवल शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, जबकि दुष्ट मित्र आपकी बुद्धि—विवेक को नुकसान पहुंचाता है। ऐसे मित्रों से सावधान रहना चाहिए।
- संदेश और शक की आदत भयनाक होता है, इससे रिश्तों में खटास आती है। मित्रता टूट जाती है।
- मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए। आपको क्रोध की सजा नहीं मिलती है बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है।
- हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि आप स्वयं पर विजय प्राप्त करो, फिर विजय हमेशा आपकी ही होगी।
- दुनिया में इन तीन चीजों को कभी छिपाया नहीं जा सकता है: चांद, सूरज और सत्य।
- सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति के दो ही गलतियां कर सकता है। पहला — या तो वह पूरा रास्ता तय नहीं करता है. दूसरा — या फिर उस रास्ते पर नहीं चलेगा।
- मनुष्य के लिए अपने लक्ष्य को पा लेने से अच्छा है कि लक्ष्य को पाने की यात्रा अच्छी हो।
कथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध की मृत्यु एक व्यक्ति द्वारा परोसे गए विषाक्त भोजन की वजह से हुई थी, भगवान बुद्ध ने एक व्यक्ति का भोजन करने का अनुग्रह स्वीकार कर लिया, उस व्यक्ति द्वारा बुद्ध को जो भोजन परोसा गया वो विषाक्त हो चुका था, किन्तु भगवान बुद्ध उस व्यक्ति के प्रेम का निरादर नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने वह भोजन ग्रहण कर लिया, जिससे उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता गया और उनकी मृत्यु हुई। गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई. में पूर्व कुशीनारा में हुई थी।
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बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।”
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