बर्बादी का आगाज किए…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
बदला-बदला सा ये गुलिस्तां देखो आज कितना बेचैन है,
इसी गुलिस्तां पर मर मिटनेवाला वो कारवां कहां है।
जाते-जाते वो हमें आजाद गुलिस्तां की सौगात दे गए,
अपने लहू का निशां वो इस मिट्टी के कण-कण में छोड़ गए।
हर जगह यहां पर देखो उन शहिदों के पुतले है,
मगर हर दिन उन्हें,कौन यहां पे याद करता है।
एक दिन आते है सभी,फूलों की मालाएं चढ़ाने हम पर,
मगर वो क्या जाने,कितना दर्दनाक था वो आजादी का सफ़र।
अपनी ही धुन में मश्गूल होकर,आज यहां हर कोई जी रहा है,
बर्बादी का आगाज किए ये वतन अब थोड़ा-थोड़ा जल रहा है।
ज़हर घोलकर मन मन में वो खेल अपना खेल रहे है,
देशभक्ति का वास्तां देकर तुम्हें,वो सत्ता का तख्त देख रहे है।
बदला-बदला सा ये गुलिस्तां देखो आज कितना बेचैन है,
इसी गुलिस्तां के लिए जिन्होंने बहाया लहू,अब वो कारवां कहां है।
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